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लघुकथा ( ये कैसी लाज?? )

 तमाशा खत्म नहीं हुआ, खेल जारी है....।

एक मुसीबत खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू...

बिशनसिंग के कोई संतान नही थी। सारी उम्मीदें खत्म थी। बहुत डॉक्टर को दिखाया लेकिन बात नहीं बनी।

उसे तथा उसके घर वालों को बिशनसिंग की पत्नी ही बांझ लगती थी। 


दोनों मियां मजदूरी कर पेट भरते थे। लेकिन औलाद न होने के कारण आये दिन दोनों के बीच खूब झगड़े होते। घर वाले भी झगड़े का कारण उसकी पत्नी को ही मानते थे।


एक दिन सड़क पर मजदूरी करते हुए बिशनसिंग को एक ट्रक वाले ने टक्कर दी दोनों पैर टूट गए शुक्र है उसकी जान बच गई।

पति की तीमारदारी के कारण उसकी पत्नी भी काम पर नहीं जा सकी और उसकी भी नोकरी जाती रही।

वो घरों में झाड़ू-पोंछा करती थी। 


घर वालों के रोज के तानों और कंगाली से परेशान हो उसकी पत्नी पड़ोसन के कहने पर एक तांत्रिक के पास जा झाड़-फूक करा आई। और औलाद की दुआ के साथ घर आई। सब सामान्य ही चला रहा था।

बिशनसिंग बिस्तर पर पड़ा था 1 महीने से उसके पैरों में प्लास्टर बंधा था। एक महीने बाद प्लास्टर खुला लेकिन अब बिशनसिंग बहुत लाचार, बीमार, हताश था। नोकरी भी दुबारा नहीं मिली थी।

वो सारा दिन घर पड़ा रहता था।


करीब 2 महीने बाद उसकी पत्नी को उल्टियां होने लगी। तो वो उसे पड़ोस के डॉक्टर के पास ले गया। जांच में पता चला कि वो गर्भवती है।


तब से घर में मातम पसरा हुआ है।

बोल किसका बच्चा है ये?

तुम्हारा ही है!  क्या बकती है मेरा बच्चा हो ही नहीं सकता।  क्यों?

वो तू नहीं समझेगी।  पहले एक डॉक्टर को दिखाया था। तो डॉक्टर ने कहा था मैं बाप नहीं बन सकता।

कुछ समझाया था उन्होंने की शुक्राणु नहीं बनते।

मेरी समझ में नहीं आया तो बोले तुम कभी बाप नहीं बन सकते।

क्या...??  उसकी पत्नी जोर से चीख पड़ी। और लोग मुझे बांझ बोलते रहे।


वो सब छोड़ अब बोल ये बच्चा किसका है। तुम्हारे बड़े भाई का एक दिन उन्होंने मुझे अपनी हवस का शिकार बना लिया था। उन्हीं का है। और बाबाजी ने भी आशीर्वाद दिया था औलाद होने का। सब उन्हीं का चमत्कार है।


बिशनसिंग खामोश कुछ नहीं बोला किसी से।

और अपने बड़े भाई के जाकर पैर पकड़ लिए। मेरी लाज रख ली भाई तुमने। मेरी पत्नी अब माँ बनने वाली है। मैं बाप बन गया!


ये कैसी लाज??


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