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मुसीबत तो बस एक नजरिया है

  एक बार अकबर-बीरबल जनफल में शिकार के लिए गए। वहां अकबर को अंगूठे में चोट लग गई। यह देख बीरबल हँसते हुए बोले, ' महाराज जो होता है अच्छे के लिए होता है।' इस पर अकबर नाराज हो गए आए सिपाहियों को आदेश दिया कि बीरबल को रास्ते भर कोड़े मारते हुए ले जाओ आर कल सुबह फांसी दे देना। फिर अकबर अकेले शिकार पर चले गए। वहां उन्हें जंगली लोगो ने पकड़ लिया और बलि देने के लिए ले गए। बलि के लिए अकबर को बैठाते हुए एक जंगली चीखा, 'इसके अंगूठे में चोट है। यह अशुद्ध है इसे छोड़ दो।' अब अकबर दुःखी हो गए और सोचने लगे कि उन्होंने बेवजह बीरबल को फांसी दे दी। वे दौड़कर गए और फांसी रुकवा दी। फिर बीरबल से माफी मांगते हुए बोले, 'देखो मैंने तुम्हारा क्या हाल बना दिया।' इस पर बीरबल कहते हैं, 'महाराज जो होता है अच्छे के लिए होता है।' हैरान अकबर पूछते है, तुम पागल हो क्या, कोड़े खाने में क्या अच्छा हो सकता है?' बीरबल जवाब देते हैं,  'महाराज, अगर मैं आपके साथ रुकता तो वो जंगली लोग मेरी बलि चढ़ा देते।'
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कब्र (लघुकथा)

 कब्र.... कब्र के कान नहीं होते? लेकिन मिट्टी ने मिट्टी की भाषा सुन ली। क्यों री तू कैसे मरी  'देख सब कैसे रो रहे है। तेरे मरने पर भी चंदन की लकड़ी का इंतज़ाम किया है इन्होंने' बड़ी भागो वाली है, कितना बड़ा परिवार है तेरा। सब नाटक कर रहे है जिज्जी, जब मैं जिंदा थी एक-एक रुपए के लिए मोहताज थी। कभी खसम के आगे तो कभी बेटों के आगे हाथ फैलती , बदले में गालियां और ताने सुनती थी। सारा दिन डंगरों के जैसे घर मे जूती रहती थी।  फिर घर में बहुएं आ गई, उनके आते ही मेरा वो छोटा सा कमरा भी मुझसे छिन गया। मेरी खाट आंगन के कोने में लगा दी गई। वहाँ दो घड़ी भी चैन न मिलता था। कभी बारिश तो कभी सर्दी तो कभी जेठ की लू सब सहती थी। और बदले में सुनती थी। 'कब तक ये बुढ़िया यूं ही सेवा करवाती रहेगी। कब पिछा छूटेगा इससे पता नहीं' ये जल्दी से निपट जाए तो हम गंगा नहा ले।

कूची (अत्यंत छोटी लघुकथा)

  शादी के बाद स्त्रियां अक्सर बन जाती है "कूची" घर की दीवारों के जैसे घर "रंग" देती है, और खुद बन जाती है बदरंग "पुताई वालों" के जैसे।।

कुत्ता....!! (अत्यंत छोटी लघुकथा )

 कुत्ता....!! तुम इंसानों ने हमसे हमारा नाम तक छीन लिया। और उसका इस्तेमाल गालियों में करते हो क्यों?? हम तो वफादार प्राणी है, तुम जैसी हैसियत नहीं रखते कुत्तों को कभी खूंखार इंसान नहीं कहते....!!

लघुकथा ( ये कैसी लाज?? )

 तमाशा खत्म नहीं हुआ, खेल जारी है....। एक मुसीबत खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू... बिशनसिंग के कोई संतान नही थी। सारी उम्मीदें खत्म थी। बहुत डॉक्टर को दिखाया लेकिन बात नहीं बनी। उसे तथा उसके घर वालों को बिशनसिंग की पत्नी ही बांझ लगती थी।  दोनों मियां मजदूरी कर पेट भरते थे। लेकिन औलाद न होने के कारण आये दिन दोनों के बीच खूब झगड़े होते। घर वाले भी झगड़े का कारण उसकी पत्नी को ही मानते थे। एक दिन सड़क पर मजदूरी करते हुए बिशनसिंग को एक ट्रक वाले ने टक्कर दी दोनों पैर टूट गए शुक्र है उसकी जान बच गई। पति की तीमारदारी के कारण उसकी पत्नी भी काम पर नहीं जा सकी और उसकी भी नोकरी जाती रही। वो घरों में झाड़ू-पोंछा करती थी।  घर वालों के रोज के तानों और कंगाली से परेशान हो उसकी पत्नी पड़ोसन के कहने पर एक तांत्रिक के पास जा झाड़-फूक करा आई। और औलाद की दुआ के साथ घर आई। सब सामान्य ही चला रहा था। बिशनसिंग बिस्तर पर पड़ा था 1 महीने से उसके पैरों में प्लास्टर बंधा था। एक महीने बाद प्लास्टर खुला लेकिन अब बिशनसिंग बहुत लाचार, बीमार, हताश था। नोकरी भी दुबारा नहीं मिली थी। वो सारा दिन घर पड़ा रहता था। करीब ...

पागल माँ

  एक पागल स्त्री को एक समझदार पुरुष माँ बना चला गया। वो रोते बच्चे को गोद में लिए दूध के लिए भीख मांग रही थी। तभी एक दूसरी स्त्री ने 20रु दुकानवाले को देकर कहा इसे बच्चे के लिए दूध दे दे। लेकिन वो पागल दुकानवाले से बोली अभी 10रु का ही दूध दे 10रु का बाद में ले लूंगी दूध फट गया तो? माँ बनते ही पागल स्त्री भी समझदार हो गई। दूसरी स्त्री निःशब्द उसे ताकती रह गई।

खुशी का चुनाव

  खुशी का चुनाव हमारे हाथ में है मनोविज्ञान से जुड़ी एक प्रोफेसर ने अपनी कक्षा में पानी से भरा एक गिलास छात्रों को दिखाते हुए पूछा,  'क्या आपमें से कोई ये बता सकता है कि इस गिलास का वजन कितना है?' कक्षा में कुछ हाथ उठे। छात्रों ने अलग- अलग जवाब दिए। किसी ने 50 ग्राम कहा तो किसी ने कुछ सौ ग्राम कहा। प्रोफेसर ने कक्षा को संबोधित करते हुए कहा, 'यह मायने नहीं रखता कि वास्तविक रूप में यह गिलास कितना वजनी है। मायने यह रखता है कि मैं इसे कितनी देर हाथ में उठाये रखती हूं। अगर मैं कुछ सेकंड के लिए गिलास को हाथ में रखती हूं तो यह बेहद हल्का महसूस होगा। लेकिन अगर मैं पूरे दिन इसे हाथ में लिए रहती हूं- तो शायद मेरा हाथ दुखने लगे।' प्रोफेसर ने समझाया, 'हमारी चिंताएं भी इसी तरह व्यवहार करती हैं। अगर मैं कुछ सेकंड्स के लिए उन पर विचार करूं तो शायद मैं दिन भर दुखी न रहूं। लेकिन अगर दिनभर हम उन्हीं चिंताओं के बारे में सोचते रहें तो दुःख का यह बोझ हम नहीं उठा पाएंगे।' सीख : खुशी का चुनाव हमारे हाथ में हैं। हम किन भावनाओं को कितना वक्त देते हैं,  हमारी आंतरिक खुशी इसी व्यवहार पर नि...